Tuesday, August 17, 2010
मंगल स्तुति
Sunday, July 5, 2009
अनन्त श्री विभूषित श्री श्री अलबेली माधुरी शरण जी महाराज

शुक सम्प्रदाय के प्रवर्तक और आद्याचार्य श्यामचरणदास अथवा चरणदास जी का आविर्भाव भाद्रपद शुक्ला तृतीय संवत १७६० (१७०३ ई. ) में अलवर जिले के डेहरा गाँव में हुआ था। पिता का नाम मुरलीधर और माता का कुंजो देवी था और उन्होंने अपने इस लाडले का नाम रणजीत रखा। पाँच वर्षीय रणजीत को शरद पूर्णिमा के दिन डेहरा गाँव में ही श्रीशुकदेव ने अवधूत रूप में दर्शन देकर गोद में लिया और बहुत प्यार-दुलार किया। राजयोग, भक्तियोग और सांख्ययोग की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लेने पर रणजीत चरणदास के नाम से जाने गए और शुक सम्प्रदाय या चरनदासी मत के प्रवर्तक बने। ' गुरुभक्ति प्रकाश ' और ' लीलासागर ' जैसे ग्रंथो में महात्मा चरणदास के अनेके चमत्कारों का वर्णन हुआ है, किंतु ऐसे सिद्ध हो जाने पर भी वे बड़े निरभिमानी रहे। उनका तो जीवन सूत्र यह था :
दया नम्रता दीनता शील क्षमा संतोष,
इनको ले सुमिरन करे निश्चय पावे मोक्ष ॥
श्री श्यामचरणदास जी के दो प्रिय शिष्यों रामरूप और ध्यानेश्यर जोगजीत ने अपने गुरु की जीवनिया लिखी है, जिनका नाम है ' गुरु भक्ति प्रकाश ' और लीला सागर ' और क्योंकि ये उनके जीवनकाल में लिखी गई थी इसलिय इन्हे प्रमाणिक माना जाता है। स्वयं श्री श्यामचरणदास जी ने दस हजार वाणिया लिखी किंतु इनमे से पाँच हजार गंगा में विसर्जित कर दी और पाँच हजार अग्नि को चढाई गई, कयोंकि अपने गुरु से उन्हें ऐसी ही प्रेरणा मिली थी। अब उनके उपदेश ' श्री भक्तिसागर ' में संगृहीत है जिसमे श्रीमदभगवत के समानानतर निष्काम कर्मयोग, अष्टांगयोग, राजयोग, स्वरोदय, नवधा भक्ति, प्रेमा व पराभक्ति तथा ब्रहमज्ञान सागर का विषद वर्णन है।
जयपुर में शुक सम्प्रदाय को भक्ति का जन आन्दोलन बना देने का समूचा श्रेय पंडित शिवदयाल वकील 'सरसमाधुरी जी ' को जाता है। इस परम भक्त और सरस कवि ने राधा कृष्ण की सगुण भक्ति दी जो मन्दाकिनी प्रवाहित की उसमे इस नगर के एक बड़े समुदाय ने अवगाहन किया और आज भी कर रहा है। पानो के दरीबे में ' सरसनिकुञ्ज ' इस सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए वृन्दावन का विकल्प अथवा दूसरा वृन्दावन ही है । इस सम्प्रदाय की उपासना सखी भाव की है और सरस माधुरी जी ने इस भावना के अनुरूप आचार्य परिकरो के चित्रों की प्रतिष्ठा कराई। प्राचीन साधू संतो की वाणियों का संग्रह कर इस भवन में एक पुस्तकालय भी स्थापित किया गया जिसमे आज भी कई हजार ग्रन्थ है।
दरीबा पान में श्री सरस निकुंज के प्रिया प्रियतम की झांकी अतीव मनोहर है। एक और श्री शुक सखिजी ( श्यामलाजी ) तथा दूसरी और श्री प्रेम मंजरीजी ( श्यामचरणदास महाराज ) अपने परिकर सहित सेवा की वस्तुए लेकर उपस्थित है। आचर्य रूप में भी दोनों और श्री शुक देव और श्री श्यामचरणदासाचार्य विराजमान है। उनके चरणों में सरस माधुरी शरण जी और उनके उतराधिकारी रसिक माधुरीशरण जी विराजमान है। रासमंडल की अष्ट सखियाँ अपने अपने कुञ्ज भवन से सेवार्थ गमन कर रही है। इस निकुंज में श्री राधा सरस बिहारी जी की सेवा सरस माधुरी शरण जी के समय से ही चली आ रही है।
स्वामी चरणदास जी के हजारो शिष्य हुए थे जिनसे अलग अलग कई परम्पराए चली, किंतु जयपुर के ' श्री सरस निकुंज ' की परम्परा इस प्रकार अंकित की गई है :
श्रीमन्नारायण भगवान् - श्री ब्रह्मा जी - श्री नारद जी - श्री वेदव्यास जी - श्री शुकदेव जी - स्वामी चरणदास जी (डेहरा, अलवर-दिल्ली) - स्वामी रामरूप जी (जयसिंह पुर, दिल्ली ) - स्वामी रामकृपाल जी (ककरोई दिल्ली ) - श्री बिहारीदास जी - ठाकुर दास जी (लुक्सर, सहारनपुर ) - स्वामी बलदेवदास जी (ब्रजप्रदेश, लुक्सर ) - स्वामी सरसमाधुरी शरण जी (मंदसौर जयपुर ) - स्वामी रसिक माधुरी शरण जी ( जयपुर ) - श्री अलबेली माधुरी शरण जी ( जयपुर -वर्तमान )।
Saturday, July 4, 2009
युगल सरकार


सम्प्रदाय शुकदेव मुनि, चरणदास गुरु द्वार।
परम धर्म भागवत मत, भक्ति अनन्य विचार॥
श्याम चरण के दास को, जपे प्रेमकर नाम।
तिनको दंपत्ति भुजन भर हंसी भेटे सुख धाम।।
अनुपम माधुरी जोरी, हमारे श्याम श्यामा की।
रसीली रसभरी अखियाँ , हमारे श्याम श्याम की॥
कटीली भोंहे अदा बांकी, सुघर सूरत मधुर बतियाँ।
लटक गर्दन की मन बसियाँ, हमारे श्याम श्यामा की ॥
मुकुट और चन्द्रिका माथे, अधर पर पान की लाली।
अहो कैसी बनी छवि है, हमारे श्याम श्यामा की॥
परस्पर मिलके जब विहरें, वो वृन्दावन के कुंजन में।
नही बरनत बने शोभा, हमारे श्याम श्यामा की॥
नही कुछ लालसा धन की, नही निर्वाण की इच्छा।
सखी श्यामा मिले सेवा, हमारे श्याम श्यामा की॥
श्री गीतगोविन्दम
