Saturday, July 4, 2009

श्री गीतगोविन्दम


संप्रदाय शुकदेव मुनि, आचारज चरणदास ।

परम धरम भागवत मत, भक्ति अनन्य विचार ॥
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राधाकृष्ण उपास्य, धर्म भागवत हमारो ।
निज वृन्दावन धाम, मुक्ति सामीप्य निहारो ॥
तीरथ गंगा जान, बर्त ग्यारस को धारो ।
क्षमा, शील, संतोष, दया निज हिये विचारो ॥
संप्रदाय शुकदेव मुनि, आचारज चरणदास ।
'राम रूप' तिन पद शरण, नवधा भक्ति निवास ॥
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भरोसो श्री शुक मुनि को भारी ।
जिनको नाम सकल सुख की निधि सब विधि मंगलकारी॥
चरण चारू नख चन्द्र चन्द्रिका भावक हिये तम हारी ।
दरशे सहज सलौने दम्पति राधा सरस बिहारी ॥
अतुलित कृपा करत निज जन पर भाव भक्ति दातारी ।
सरस माधुर सेव कुञ्ज की कृपा करो बलिहारी ॥
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आसरो श्याम चरणदास चरण को ।
और उपाय नहिं कोऊ दीखत या भव सिन्धु तरन को ॥
दृढ विश्वास आस इन ही की जाचक नाहिं नरन को ।
टारी टेक टेर नाहिं कबहूँ भय नहीं जन्म मरण को ॥
जग में दासन दास कहोए नहीं अभिमान वरन को ।
सरस माधुरी संशय नाही है बल मोहि शरण को ॥
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मोहि भरोसो श्री गुरु ही को ।
सब विधि गुरु सहायक जिनके, भय नहिं मोकों पाव रती को ॥
साक्षात् श्री हरी गुरु राजे, सब संदेह गयो है जीको ।
दृढ विश्वास भयो मन मेरे, पायो अवसर अति ही नीको ॥
सरवस धन गुरुदेव दयानिधि, और जगत सब लागत फीको ।
सरस माधुरी समरथ स्वामी, बेग मिलावे प्यारी पीको ॥
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हरि मोहि ऐसा कर वैरागी ।
बाहर ग्रेही सा दर्साऊ, अन्तर मे रहूँ त्यागी ॥
राग द्वेष दोनों छुट जावें, समझू आतम रूपा ।
हर्ष शोक हिरदय से भागे, व्यापे छाह न धूपा॥
सांच हरि सूं सहज जगत सूं, कोऊ लेप न लागे ।
तिर्गुण माया की मरजादा, पहुचावो तिहि आगे॥
कर्म न बांधे भरम न उपजै, कोई रहे न आसा ।
चार पदारथ में नहिं अटकू, कर लीजै निज दासा॥
कंठी प्रीति गले पहिरावो, किरपा तिलक लगावो ।
चरणदास गुरु हाथ धरों अब, 'रामरूप' अपनावो॥
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अथ श्रीमंगलाकुञ्जभावना पद
वय किशोर लावन्यानिधि वसन चम्पई रंग ।
सेवा स्तवगान की प्रेम पुलक अंग अंग ॥
लालमणिन सों जगमगत कुञ्ज मंगला ऍन ।
अतुलित रचना है तंहा कहत बनत नहीं बैन ॥
अग्र मंगला कुञ्ज के सुन्दर वर दालान ।
वीन लिये कर शुकसखी करन लगी कलगान ॥
श्यामचरणदासी सखी लें परिकर निज संग ।
सेवा सोंज ले कर खड़ी हिय में हर्ष उमंग ॥
अरुण चम्पई वस्त्र्वर नख शिख सजि श्रृंगार ।
रस आचारज यूथ पति शोभित कुञ्ज अगार ॥

3 comments:

  1. Radhey Radhey.. Bahut sunder bhav hain...

    Hari mohe aisa kar vairaagi....

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  2. Sri Maharaj ji ke charno me Sadar Dadwat Pranam

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  3. बिहारी शरण पारीक द्वारा रचित परम गुरू श्री सरस माधुरी शरनजी से सम्बंधित लेख इस ब्लॉग पर देखे एवं आपनी टिपण्णी दें ....http://beharisharanpareek.blogspot.com/

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